मंडी का इतिहास

इतिहास –

मंडी जिला सुकेत और मंडी रियासतों से मिलकर बना है। सुकेत की रियासत पहले स्थापित की गई थी। 765 ई. में सुकेत रियासत की स्थापना। वीरसेन ने किया। मंडी राज्य की स्थापना 1000 ई. में सुकेत वंश के बहुसेन ने की थी। में की । कनिंघम के अनुसार सेन वंश बंगाल से आया था।

मंडी के बारे में

सुकेत रियासत –

नामकरण – सुंदरनगर क्षेत्र का पहले शुक क्षेत्र या शुक खेत नाम था जो बाद में सुकेत हो गया। यहाँ सुखदेव नाम के एक महात्मा रहते थे, जिनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम ‘सुक्षेत्र’ और बाद में सुकेत पड़ा। सुंदरनगर शहर का प्राचीन नाम बनेड था।

स्थापना –

सिकंदर कनिंघम के अनुसार सुकेत रियासत की स्थापना 765 ई. में हुई थी। वीरसेन ने किया। वह बंगाल के सेन राजवंश से संबंधित थे। उनके पिता रूपसेन ने ‘रोपड़’ (रूपनगर) नगर की स्थापना की थी।

वीरसेन –

वीरसेन ने सर्वप्रथम कुन्नू धर को अपना निवास स्थान बनाया। वीरसेन ने सुरही क्षेत्र के पांगना में सुकेत राज्य की पहली राजधानी स्थापित की। वीरसेन ने अपने राज्य की राजधानी पांगना में चंबा के मुसनवर्मन को आश्रय दिया और अपनी बेटी की शादी उससे कर दी। विरसेना ने दहेज में मुसनवर्मन को पंगना जागीर दी। वीरसेन ने कुल्लू के राजा भूप्पल को बंदी बनाकर कुल्लू रियासत को अपनी जागीर बना लिया। वीरसेन ने कांगड़ा के साथ सीमा रेखा तय की और सिरखड में वीरा किले का निर्माण करवाया। हटली के राणा को पराजित करने के उपलक्ष्य में वीरसेन ने बीरकोट का किला बनवाया।

विक्रमसेन –

विक्रमसेन धार्मिक प्रवृति के राजा थे। उन्होंने दो साल के लिए अपने भाई त्रिविक्रमसेन को अपना राज्य सौंप दिया और हरिद्वार की तीर्थ यात्रा पर चले गए। त्रिविक्रमसेन ने षड्यंत्र रचा। विक्रमसेन ने क्योंथल के राजा की मदद से त्रिविक्रम सेन और हस्तपाल को एक युद्ध में हराया।

लक्ष्मणसेन –

लक्ष्मणसेन ने कुल्लू पर आक्रमण किया और वजीरी रूपी, वजीरी लगसारी और वजीरी परोल के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। उस समय कुल्लू का राजा ‘हमीरपाल’ था।

साहुसेन (1000 ई.) –

साहुसेन और बहुसेन विजयसेन के पुत्र थे। दोनों के बीच बिगड़ते संबंधों के कारण छोटे भाई बहुसेन ने सुकेत छोड़ दिया और कुल्लू के मैंगलोर में जाकर अपनी छोटी सी रियासत स्थापित की।

मदन सेन (1240 ई.)-

मदनसेन ने पांगना के उत्तर में मदनकोट दुर्ग का निर्माण करवाया। मदनसेन ने गुम्मा और द्रंग के राणाओं को हराकर नमक की खदानों पर कब्जा कर लिया। मदनसेन ने कुल्लू पर पुनः अधिकार कर लिया और मनाली से बजौरा तक का क्षेत्र राणा भोसल को दे दिया। मदनसेन ने बटवारा के राणा मंगल को पराजित किया, जिसके कारण राणा मंगल को सतलुज पार करके मंगल रियासत की स्थापना करनी पड़ी। मदनसेन के शासन में सुकेत रियासत अपनी समृद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी थी। मदनसेन ने 1240 ई. राजधानी को पंगना से लोहारा (बल्हघाटी) में बदल दिया।

करतार सेन (1520 ई.) –

करतार सेन 1520 ई. में। अपनी राजधानी को लोहरा से करतारपुर स्थानान्तरित किया। करतारपुर को वर्तमान में पुराणनगर कहा जाता है। करतारसेन के बाद अर्जुन सेन राजा बने जो कुल्लू के राजा जगत सिंह के समकालीन थे।

श्याम सेन (1620 ई.) –

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने प्रसन्न होकर श्यामसेन को ‘खिलात’ देकर अपनी मुद्रा चलाने की अनुमति दे दी। श्यामसेन का बिलासपुर (कहलूर) के राजा कल्याण चंद (लगभग 1630 ई.) के साथ युद्ध हुआ था। जिस स्थान पर कल्याण चंद की मृत्यु हुई, उसे ‘कल्याण चंद की देओरी’ कहा जाता था। नूरपुर के राजा जगत सिंह की शिकायत पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने श्यामसेन को दिल्ली बुलाया और कैद कर लिया। श्यामसेन ने महुनाग से अपनी रिहाई के लिए प्रार्थना की, जिसके बाद जगत सिंह के विद्रोह के कारण श्यामसेन की जेल से जल्द रिहाई हुई। श्याम सेन ने जागीर को 400 रुपये वार्षिक कर पर महुनाग मंदिर को दान कर दिया। श्यामसेन के बाद रामसेन ने माधोपुर में रामगढ़ का किला बनवाया।

जीत सेन (1663 ई.) –

वे मण्डी के राजा श्याम सेन (1664-79), सिद्ध सेन (1684-1720) के समकालीन थे। जीत सेन मंडी के राजा श्याम सेन को ‘ठीकर नाथ’ कहकर बुलाते थे। मंडी के राजा श्याम सेन ने जीत सेन को लोहारा नामक स्थान पर पराजित किया। सिद्ध सेन ने कहलूर के राजा भीमचंद की सहायता से सुकेत पर आक्रमण किया और हटली धार तथा वीरकोट के दुर्गों को छीन लिया।

गरुणसेन (1721-1748 ई.) –

गरुणसेन ने सुंदरनगर (बानेड़ प्राचीन नाम) नगर की स्थापना की जिसे विक्रमसेन द्वितीय ने राजधानी बनाया। गरुण सेन की रानी ने सूरजकुंड मंदिर का निर्माण करवाया।

विक्रमसेन (1748-1767 ई.) –

विक्रमसेन के समय 1752 ई.। अहमद शाह दुर्रानी ने सुकेत की रियासत पर कब्जा कर लिया। 1758 ई. में आदिना बेग ने सुकेत रियासत पर अधिकार कर लिया। विक्रमसेन के समय में 1758 ई. में सुकेत रियासत पर प्रथम सिख शासन। इसकी स्थापना जस्सा सिंह रामगढ़िया ने की थी।

रणजीत सेन (1767-1791 ई.)-

रणजीत सेन के समय जाह सिंह कन्हैया (1775-1786 ई.) ने सुकेत रियासत को अपने अधीन रखा। रंजीत सेन की अपने भाई किशन सिंह से दुश्मनी थी जो संसार चंद के ससुर थे। उस समय नरपत नाम के एक वजीर थे, जिनके संबंध रणजीत सेन के पुत्र विक्रमसेन से अच्छे नहीं थे, इसलिए विक्रमसेन सुकेत छोड़कर कांगड़ा के महलमोरियो चले गए।

विक्रमसेन द्वितीय (1791-1838 ई.) –

विक्रमसेन के वजीर नरपत से विक्रमसेन के संबंध अच्छे नहीं थे। इसलिए विक्रमसेन ने 1786 ई. 1792 ई. से महलमोरियो में रहे। अपने पिता की मृत्यु के बाद विक्रमसेन ने सर्वप्रथम नरपत वजीर को ‘बंटवाड़ा किले’ में बंदी बनाकर मरवा डाला। विक्रमसेन ने बनेड (सुंदर नगर) को अपनी नई राजधानी बनाया। सुकेत रियासत ने 1809 ई. विक्रमसेन के समय में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन आ गया। विलियम मूरक्रॉफ्ट ने 1820 ई. मैंने सुकेत रियासत की यात्रा की। विक्रमसेन ने अपने चाचा किशन सिंह के साथ मंडी के छह किलों पर कब्जा कर लिया। विक्रमसेन के समय पन्नू वजीर मण्डी से युद्ध करते हुए मारा गया। मंडी के राजा ईश्वरी सेन थे, जिन्हें संसार चंद ने 12 साल तक ‘नादौन’ में बंदी बनाकर रखा था। अमरसिंह थापा ने सुकेत से हटली और वीर कोट के किले छीन लिए थे। विक्रमसेन ने अपने कार्यकाल में पाली और दुदर किले बनवाए थे। रणजीत सिंह ने गोरखाओं के खिलाफ सुकेत रियासत की 11 हजार रुपये में मदद की थी, जिसके बाद सुकेत रियासत सिखों के अधीन आ गया।

उग्रसेन (1838-76 ई.)-

उग्रसेन के समय 1839 ई. विग्ने ने सुकेत की यात्रा की। रणजीत सिंह के पौत्र नौनिहाल सिंह ने 1840 ई. जनरल वानथुरा के नेतृत्व में सुकेत रियासत पर कब्जा कर लिया गया। उग्रसेन ने 1846 ई. सिक्खों को राज्य से खदेड़ने के बाद उन्होंने ब्रिटिश सत्ता की अधीनता स्वीकार कर ली। 1846ई. 1860 ई. में सुकेत रियासत अंग्रेजों के अधीन आ गई। उग्रसेन के वजीर नरोत्तम ने दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया। वह नरसिंह मंदिर के वजीर भी थे। उग्रसेन ने अमला विमला में शिव मंदिर का निर्माण किया। 1876 ​​ई. में उग्रसेन की मृत्यु अक्टूबर, 1846 ई. में सनद उग्रसेन को दे दी गई।

दुष्ट निकंदन सेन (1879-1908 ई.)-

1893 ई. में दुष्ट निकंदन सेन के समय भोजपुर में स्कूल, 1900 ई. में वाणे में डाकघर। इन एंड टेलीग्राफ 1906 ई. सतलुज नदी के ऊपर 1889 में खोला गया। जूरी में पुल का निर्माण किया गया था।

भीमसेन (1908-1919 ई.) –

भीमसेन ने बनेरड में किंग एडवर्ड अस्पताल खोला। उन्होंने मंडी-सुकेत मोटर मार्ग का निर्माण करवाया।

लक्ष्मण सेन (1919-1948 ई.)-

लक्ष्मण सेन सुकेत रियासत के अंतिम राजा थे। 1 नवम्बर, 1921 ई. सुकेत रियासत पंजाब सरकार से ब्रिटिश भारत सरकार के नियंत्रण में आ गई। फरवरी, 1948 ई. में पंडित पद्मदेव के नेतृत्व में सुकेत सत्याग्रह हुआ, जिसके बाद सुकेत रियासत का भारत में विलय हो गया। 15 अप्रैल, 1948 ई. को मंडी और सुकेत रियासतों को सम्मिलित करते हुए।

मंडी रियासत –

 मंडी रियासत की स्थापना 1000 ई. में सुकेत रियासत के राजा साहूसेन के छोटे भाई बहुसेन ने की थी। में की । बहुसेन और साहूसेन के बीच अच्छे संबंध नहीं थे, जिसके कारण बहुसेन ने सुकेत रियासत को छोड़ दिया और मैंगलोर (कुल्लू) में मंडी रियासत की नींव रखी। बहुसेन ने हाट (कुल्लू) में राजधानी स्थापित की।

बनसेन –

1278 ई. में बहुसेन की 11वीं पीढ़ी के राजा करचन सेन। मैंगलोर के आसपास की लड़ाई में वह कुल्लू के राजा द्वारा मारा गया था। करणचन सेन की गर्भवती पत्नी ने अपने पिता के अधिकार क्षेत्र सियोकोट मंडी में बान (ओक) के पेड़ के नीचे बानसेन नामक पुत्र को जन्म दिया। क्योंकि उनका जन्म बरगद के पेड़ के नीचे हुआ था। बानसेन के नाना की कोई संतान नहीं थी, इसलिए बानसेन सियोकोट का प्रमुख बन गया। बनसेन ने 13वीं-14वीं शताब्दी में मण्डी के भौली में अपनी राजधानी बनाई। बनसेन ने पराशर झील के पास पराशर मंदिर का निर्माण करवाया। मण्डी में मण्डी रियासत की स्थापना का श्रेय बानसेन को जाता है जिन्होंने अपनी राजधानी मैंगलोर से भ्युली स्थानांतरित की। बानसेन ने 1278 ई. से 1340 ई. बनसेन के पुत्र कल्याणसेन के बीच शासन करने पर राजधानी को मंडी शहर के पास बटाहुली में स्थानांतरित कर दिया गया।

अजबर सेन (1527 ई.)-

अजबर सेन 1527 ई. मैं बाज़ार का बादशाह बन गया। अजबर सेन ने 1527 ई. मैंने मंडी शहर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया। अजबर सेन ने मंडी शहर में भूतनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। अजबर सेन की रानी सुल्ताना देवी ने मंडी में त्रिलोकीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। अजबर सेन ने 1534 ई. मंडी शहर में हुई मृत्यु का नाम ‘मांडव्य ऋषि’ के नाम पर रखा गया है।

साहिब सेन (1554-75 ई.)-

साहिब सेन ने 1554 के आसपास (द्रंग के राणा से) द्रंग की नमक की खदानों पर कब्जा कर लिया। वह अकबर के समकालीन मंडी के राजा थे। साहिब सेन ने कुल्लू के राजा प्रताप सिंह के साथ मिलकर राणा जयचंद को हराकर ‘सिराज मंडी’ पर कब्जा कर लिया। चौहर में हुरंग के देवता नारायण देव की कृपा से साहिब सेन को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने नारायण सेन रखा। सुकेत के राजा उदय सेन से बहुत अधिक क्षेत्र।

हरिसेन (1623 ई.)-

हरिसेन मण्डी के राजा नूरपुर के राजा जगत सिंह के समकालीन थे। हरिसेना ने अपने पिता केशव सेन की स्मृति में वरशिला में एक स्मारक बनवाया।

सूरजसेन (1637-64 ई.) –

सूरजसेन से पूर्व केशवसेन के समय मण्डी मुगलों के अधिकार में आ गया था। सूरजसेन ने 1625 ई. कमलागढ़ का किला सूरजसेन में बनवाया गया था और मंडी में दमदमा महल बनवाया गया था। 18 पुत्रों की मृत्यु के बाद सूरजसेन ने 16 मार्च, 1648 ई. को माधोराय की चाँदी की मूर्ति खरीदी। मंडी शिवरात्रि मेले में रथयात्रा इसी तिथि से शुरू मानी जाती है क्योंकि इसी दिन मंडी शिवरात्रि में पहली बार माधोराय के रथ की शोभायात्रा निकाली गई थी। सूरजसेन की रानी ने नारायण लाला को अपना धर्म भाई बनाया था। बंगाल और कुल्लू की सेनाओं ने सूरजसेन को युद्ध में हरा दिया और मंडी के शाहपुर, करनपुर और शमशेरपुर के किलों पर कब्जा कर लिया। गुलेर के राजा मानसिंह ने भी सूरजसेन को पराजित कर बाजार को दो बार लूटा। उसने कमलागढ़ किले को ले लिया। सूरजसेन ने जालपू वजीर की मदद से अनंतपुर के राणा को नारीपुरी मंदिर में मरवा दिया। रानी ने जालपू को श्राप दिया कि उसने अपने पति को धर्म बहन बनाकर मरवा दिया। सूरजसेन की शादी नूरपुर के राजा जगत सिंह की बेटी से हुई थी, जिसके बदले में उन्हें दहेज में संधोल मिला था। सूरजसेन ने माधोराय को मण्डी राज्य का कुलदेवता बनाया और उन्हें गद्दी समर्पित की।

श्यामसेन (1664-1679 ई.)-

सूरजसेन के बाद उसका भाई श्यामसेन राजा बना। उन्होंने मंडी के तरनाधार में श्यामा काली मंदिर का निर्माण करवाया। श्याम सेन ने सुकेत के राजा जीत सेन को हराया और लोहरा गढ़ पर कब्जा कर लिया। मंडी के सिपाही ‘नयना कटोच’ ने जितसेन को पकड़ लिया और उसका मुकुट छीनकर श्यामसेन को भेंट कर दिया। श्यामसेन ने उन्हें द्रांग नमक की खान से प्रति वर्ष आठ भार नमक निःशुल्क लेने की अनुमति दी। श्यामसेन ने ‘हर्बा सिंह’ को लोहारा किले में किले के रूप में रखा।

सिद्धसेन (1684-1727 ई.)-

मण्डी के राजाओं में सिद्धसेन एक योग्य एवं कुशल योद्धा माने जाते हैं। गुरु गोबिंद सिंह सिद्धसेन के शासनकाल में मंडी आए थे। सिद्धसेन ने दमदमा महल के अंदर बंगाल के राजा पृथ्वीपाल की हत्या करवा दी। सिद्धसेन ने 1695 ई. सिद्धसेन में सरखपुर का किला बनवाया, सिद्ध गणेश, त्रिलोकनाथ पंचवक्त्र और सिद्ध जालपा मंदिर बनवाए। ● सिद्धसेन ने अपने पिता की रखैल के बेटे मियाँ जप्पू को अपना वज़ीर नियुक्त किया जो एक सक्षम प्रशासक और चतुर राजनीतिज्ञ था। वह प्रशासन का सारा काम देखता था। उन्होंने मंडी में जमीन बसाई जो 200 साल (1917 तक) चली। सिद्धसेन ने सुकेत के नाचन, हटली, दलेल (1688 ई.), सरखपुर, शिवपुर किला (1690 ई.), माधोपुर (1699), रायपुर (1698) क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। सिद्ध सेन बंगाल के पृथ्वीपाल के ससुर थे जिन्हें उन्होंने ‘दमदमा महल’ में मार डाला था। पृथ्वीपाल की बहन का विवाह कुल्लू के राजा मानसिंह से हुआ था। सिद्धसेन ने कुल्लू पर भी आक्रमण किया। सिद्धसेन ने मियां बीरू सिंह को अपना सेनापति नियुक्त किया था।

शमशेर सेन (1727-81 ई.)-

सिद्धसेन के पुत्र शिव-ज्वाला सेन की मृत्यु 1722 ई. में हुई। यह 1727 ई. में हुआ था। सिद्धसेन के बाद, उनके पोते शमशेर सेन पांच वर्ष की आयु में मंडी के राजा बने। इनके भाई का नाम ‘धूल छतिया’ था। बचपन में मियां जप्पू (वज़ीर) रानी हटली (शमशेर सेन की माँ) की मदद से राज्य के मामलों को चलाते थे। शमशेर सेन ने कुल्लू पर हमला किया और ‘चौहार’ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। रानी हटली ने हरिदास और धर्मनाथ के साथ मिलकर जप्पू को मरवा दिया, जिससे राजा को गुस्सा आ गया। शमशेर सेन ने धर्मनाथ को मृत्युदंड दिया, डर के मारे रानी बाजार छोड़कर ‘घासनू’ में रहने लगी। शमशेर सेन ने अपने भाई ‘धूल चाटिया’ को वजीर बनाया। सूरमा सेन शमशेर सेन के पुत्र थे। शमशेर सेन के समय जस्सा सिंह रामगढ़ीया और जय सिंह कन्हैया के प्रभाव में मंडी रहा | शमशेर सेन की 54 वर्ष राज करने के पश्चात् 1718 ई. में मृत्यु हुई |

मंडी का मानचित्र :-

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